जनरल डब्बा
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पिछले दिवारी में छुट्टी मिलल रहे ,
दिहाड़ी जुटल रहे ,
काजाने दिवारी फेर ना आई
ऐसन लागत रहे ,
टिकस ना रहे
त का,
ट्रेन में घूस दिआईल ,
टीटी त बटले रहल ,
इ दिवारी गावे घूमिये आवे के बा
सोचले रहनी,
माई कहले रहे कि
रास्ता में मत खइए
कोनो के दिहल,
मत सुतिये
समनवा के नियर,
सोचले रहनी कि
घरे दिया जरुर जलाएम,
पठाखा जरुर छोडेम
गाँव के यारन के साथ,
पर किस्मत में लिखल रहे कुछु और,
रस्ते में साल भर के कमाई
औरी कपडा-लत्ता के हो गइल लूट,
दिवारी-दिवारी मनवा में बडबडात रहनी,
बेहोस रहनी हो दादा ,
ट्रेनवा गईल छूट,
मनवा मसोस के
माई के बात सोच के
इ दिवारी बड़ी रोअतनी हो,
इ बारी छुट्टी नइखे देले मालिक हमार!
– सौरभ के.स्वतंत्र
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