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कही ये बसंत तो नहीं!

जनरल डब्बा
जनरल डब्बा
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आज आसमान सागर है

या सागर आसमान,

आज हवा सर्द है

या सर्द हवा है,

आज पात्तियां जामीन पर हैं

या जमीं ही डाल पर,

आज मुस्कराहट होठ पर

या होठ मुस्कराहट में सराबोर,

आज खुशियाँ दिल में हैं

या दिल ही खुशियों में,

आज जन्नत कदमों  में

या ह़र कदम जन्नत की तरफ..

पता नहीं क्यों

आज

ऐसा सुखद अहसास हो रहा

कि मै तुम हो

तुम मै!

कही ये बसंत तो नहीं

या मै कोई महंत तो नहीं,

प्रकृति का ये सुन्दर रूप!

आज मै रकम-रकम

की पत्तियां, मुस्कराहट, खुशियाँ,

मौसम और प्यार

इकठ्ठा कर रहा हूँ

ताकि आने वाली पीढ़ी

को दे सकू इतने सारे प्यार,

मैंने आज पेड़ लगाया है!

तुम भी लगा के देखो तो जरा;

तुम भी बन जाओगे

इन खजानों के मालिक!

– सौरभ के.स्वतंत्र

डालडाल

hamarivani.com

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