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एक हिटलर जर्मनी में हुआ करता था और दूसरा अभी भारत में है. दोनों में समानता ये है कि दोनों अपने देश की जनता का दमन करते रहे. जर्मनी वाला तो इतिहास के पन्नो में दर्ज हो चुका है वहीं यहाँ वाला इतिहास बना रहा है. भारत के इतिहास को उठा कर देखे तो अंग्रेजो का शासन डार्क एज रहा और अब ये वक़्त इतिहास का काला वक़्त प्रतीत हो रहा है. दरअसल, इंधन के मूल्य वृद्धि ने आम जनता के अंतड़ियों में ऐसा मरोड़ पैदा कर दिया है कि उसे वर्मान केंद्र सरकार को हिटलर कहने पर मजबूर होना पड़ रहा है. पेट्रोल का एक साल में नौ बार बदस्तूर मूल्य वृद्धि एक सीरिअस मजाक बनते जा रहा है आम जनता के साथ. लिहाजा, फैमिली बजट का फलूदा निकलना भी स्वभाविक है. इंधन के कीमत की इस अप्रत्याशित नजीर ने एक कमजोर विपक्ष और हिटलर टाइप सरकार को पूर्णरूपेन चरितार्थ किया है. मुझे लगता है कि अगर इस वक़्त रेफ्रेंडम कराया जाए तो जनमत सरकार और विपक्ष दोनों को खारिज कर देगी. क्योंकि, सवाल यहाँ आम जनता के अधिकारों का है, उनकी सहूलियत का है. मुझे नहीं लगता कि आम जनता के सहूलियत पर रंदा मारकर कोई सरकार आज तक लोकप्रिय हुयी है. इंदिरा गाँधी के शासन की बानगी इतिहास की पगडंडियों प़र आज भी स्थित हैं. दमन से द्रोह बढ़ता है यह सत्ता में मदांध सरकार को कौन समझाए? जे.पी. को इसी धरती ने पैदा किया है. एक और जे.पी. पैदा हो जाए तो आश्चर्या न होगा. दूसरी ओर अन्ना हजारे और राईट टू रिजेक्ट की प्रासंगिकता बढती जा रही है इस डार्क एज में नित-नित.
– सौरभ के.स्वतंत्र
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